Wednesday, August 17, 2011

गुलज़ार


तुमने
एक पूरा बगीचा
उगाया हुआ है
अपने भीतर
अपनी बागवानी से
पैदा की हैं
फूलों की नयी नयी किस्में
जादू है तुम्हारे हाथों मे
जो हर बार
फूलों मे
नया रंग भर देता है
कौन सा पानी देते हो इन्हे
कैसी है वो मिट्टी
जहाँ पनपते हैं
ये फूल

तुम
जो भी लिख देते हो
वो फूल सा महकने लगता है
और उसकी वो महक़
इतनी ख़ास होती है
हमारे लिए
कि दुनिया भर के
इत्र
फीके पड़ जाते हैं
उस महक़ के आगे

हो भी क्यूँ ना
सुखन के गुलों के
बादशाह हो तुम
बाकी सब तो सब हैं
मगर गुलज़ार हो तुम

किसी रोज़
अपने बगीचे के
किसी भी पौधे से
एक कलम काटकर
मेरे भी सीने मे
बो देना............

(GULZAR SAAB KO JANMDIN KI BAHUT BAHUT BADHAI)

1 comment:

  1. किसी रोज़
    अपने बगीचे के
    किसी भी पौधे से
    एक कलम काटकर
    मेरे भी सीने मे
    बो देना............

    bahut khoob..........kya umda khayaal hai!

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