ख्वाब की बहुमंज़िला इमारत मे
मैं जोड़ता रहता हूँ
और भी मंज़िलें
जब रात के झुरमुटे मे
ठंडी हवाओं के सहलाते हुए हाथ
मुझे ले जाते हैं
मन के भीतर की
उस दूसरी दुनिया मे
मगर दिन के उजाले मे
जब एक दस्तक पर
मैं खोलता हूँ आँखों का दरवाजा
तो वहाँ खड़ी होती है हक़ीक़त
हाथ मे एक
तेज़ धूप वाली टॉर्च लिए
कुछ पल लगते हैं
आँखों को
उस लगभग अँधा करती धूप का
आदी हो जाने मे
और उसके बाद
जब देखता हूँ गौर से
तो पड़ता है मालूम
कि हक़ीक़त अकेले नही आई है
बल्कि उसके साथ आए हैं
नगर निगम के उस दस्ते की तरह
बड़े बड़े बुलडोज़र
(अवैध निर्माण तोड़ने वाले)
बस फिर शायद
मिनट भर भी नही लगता
दिल पे हाथ रखकर
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
तो पता चलता है
कि मिट्टी मे मिल चुकी हैं
बहुमंज़िला इमारत की
बहुत सी मंज़िलें
और उसके बाद
थमाया जाता है एक नोटिस
मैडम हक़ीक़त के दस्तख़त वाला
''कि आपकी हद इतनी ही है''
बड़ी सख़्त हैं ये मैडम
अपने काम मे
बातचीत की
कोई गुंज़ाइश नही रखती
और हमे अपनी इमारत मे
एक ईंट भी नही लगाने देती
एक्सट्रा
bahut badhia..........soch........kalpana..........
ReplyDeletedhanywad bhai
Deleteवाह क्या imagination , है
ReplyDeleteसपनों की ईमारत और हकीकत की नगर निगम वाली मैडम
बहुत खूब!
dhanywad bhai
DeleteDono upmaaye behad umda hai Yogesh bhai - khwaabo ki imaarat aur haqeeqat ke hukm! :)
ReplyDeleteshukriya hussain bhai
Deletekhawabo ka bana aur unka fir tutna..kitni khubsurti se aapne bataya hai...sach bahut achcha likha hai...badhai
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
bahut bahut shukriya aapka
Deletewaah waah ! takreeban har aam insaan ke sapnon ki oonchi udaan ko rokti haqeeqaton ki bahut khoob bayaani...
ReplyDeletebahut hi badhiya andaaz aur behtareen rachna !!!
bahut bahut shukriya aapka
Delete