Monday, January 16, 2012

ताज़ा खबर है

ताज़ा खबर है
कि अब
कच्ची ही रहेंगी
बस्तियों की झोपड़ियाँ
क्योंकि रोक लेंगी
धूप का सारा रास्ता
हर तरफ फैलती हुई
ऊँची इमारतें
अब और भी होंगे पक्के
उनके रंग
सोखकर
ग़रीब बस्तियों के
हिस्से की धूप

ताज़ा खबर है
कि अब
ऊँची इमारतों की छत पर
खुदा की खातिर बनेगे
हैलीपैड
सुना है कि खुदा
अब पाँव नही करेगा मैले
धूल और कीचड़ से सनी
संकरी गलियों मे जाकर

ताज़ा खबर है
कि नयी व्यवस्था मे
अब कोई नही होगा
मसीहा
कमज़ोरों का

Tuesday, January 3, 2012

एक्सट्रा

ख्वाब की बहुमंज़िला इमारत मे
मैं जोड़ता रहता हूँ
और भी मंज़िलें
जब रात के झुरमुटे मे
ठंडी हवाओं के सहलाते हुए हाथ
मुझे ले जाते हैं
मन के भीतर की
उस दूसरी दुनिया मे

मगर दिन के उजाले मे
जब एक दस्तक पर
मैं खोलता हूँ आँखों का दरवाजा
तो वहाँ खड़ी होती है हक़ीक़त
हाथ मे एक
तेज़ धूप वाली टॉर्च लिए

कुछ पल लगते हैं
आँखों को
उस लगभग अँधा करती धूप का
आदी हो जाने मे
और उसके बाद
जब देखता हूँ गौर से
तो पड़ता है मालूम
कि हक़ीक़त अकेले नही आई है
बल्कि उसके साथ आए हैं
नगर निगम के उस दस्ते की तरह
बड़े बड़े बुलडोज़र
(अवैध निर्माण तोड़ने वाले)

बस फिर शायद
मिनट भर भी नही लगता
दिल पे हाथ रखकर
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
तो पता चलता है
कि मिट्टी मे मिल चुकी हैं
बहुमंज़िला इमारत की
बहुत सी मंज़िलें

और उसके बाद
थमाया जाता है एक नोटिस
मैडम हक़ीक़त के दस्तख़त वाला
''कि आपकी हद इतनी ही है''

बड़ी सख़्त हैं ये मैडम
अपने काम मे
बातचीत की
कोई गुंज़ाइश नही रखती
और हमे अपनी इमारत मे
एक ईंट भी नही लगाने देती
एक्सट्रा