Monday, October 1, 2012

पास मेरे है मेरा भोला-भाला सच




















काले चश्मों के भीतर है काला सच
छुपा लिया है सबने अपना वाला सच

शाम को भी क्यूँ आँख पे काले चश्मे हैं
फ़ैशन मे है दुनिया गड़बड़झाला सच


हर पल रंग बदलने वाला झूठ नही
पास मेरे है मेरा भोला-भाला सच


जिसने जैसा समझा वैसा मोड़ दिया
सबने अपने सांचो मे है ढाला सच

अपने छोटे छोटे स्वार्थ की खातिर ही
हमने,तुमने,सबने मिलकर टाला सच

झूठ है चढ़ बैठा दुनिया के मस्तक पर
पाँव के नीचे जैसे दुखता छाला सच

धज्जी धज्जी होकर चकनाचूर हुआ
न्यायालय मे जब भी गया उछाला सच

Wednesday, July 11, 2012

बेवजह ही वो गया मर, याद है अब तक

















खून मे लथपथ थे खंज़र, याद है अब तक
हू-ब-हू हमको वो मंज़र, याद है अब तक


आग मे जलते हुए घर, याद है अब तक
धूल के उड़ते बवंडर, याद है अब तक

हर कोई ज़िंदा था जो उसकी निगाहों मे
कांपता था ख़ौफ़ थर थर, याद है अब तक

दुधमुँहे को अपनी छाती से लगा करके
एक माँ दौड़ी थी दर दर, याद है अब तक

नफ़रतों ने क़ौम की जिसको जला डाला
पीढ़ियों के प्यार का घर, याद है अब तक

रहनुमा के कान मे जूँ तक नही रेंगी
हो गये थे खुदा पत्थर, याद है अब तक

दास्ताँ सरकार की जो फाइलों मे है
चीख थी उससे भयंकर, याद है अब तक

वो जो मंदिर मे भी,मस्जिद मे भी मिलता था
बेवजह ही वो गया मर, याद है अब तक


Tuesday, June 19, 2012

कोई कब तक भला उदास रहे




कोई कब तक भला उदास रहे
कोई अपना तो आस-पास रहे

कह सकें जिससे लगी इस दिल की
कोई तो इस क़दर भी खास रहे


कभी तो मुझपे मेहरबाँ हो तू
तेरी बातों मे भी मिठास रहे

इन अंधेरों मे ऊबता है मन
अब तो हो भोर,कुछ उजास रहे

कोई बुरा नही ऊँचा उड़ना
बस ज़मीनों का भी एहसास रहे

अर्ज़ इतनी कोई ना हो भूखा
ए खुदा सबके तन लिबास रहे

Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल

नींद गई उस देस सजनवा
गये हो तुम जिस देस सजनवा

राह तके पथराईं आँखें
लौटो अब इस देस सजनवा

बिरहा हमे डराये धरकर
अँधियारे का भेस सजनवा

अँसुवन संग धुँधलाई पाती
भेजो फिर संदेस सजनवा

रूठे पायल बिंदी बिछिया
कंगन काजल केस सजनवा

सौतन बन बैठा है हमरी
तुम्हरा ये परदेस सजनवा

Friday, May 11, 2012

पटरियाँ

जो है
और जो होना चाहिए
पटता नही है
उसके बीच का फ़र्क
हज़ार कोशिशों के बाद भी
रेल की दो समानांतर
पटरियों के फ़ासले सा

आदमी
अपने अथक प्रयासों से
देता है अपने वर्तमान को
एक मुश्किल मोड़
पहुँचने की आस मे
अपनी इच्छाओं के
ऐच्छिक बिंदु पर
और हर बार
ऐसा करने के बाद
जब वो देखता है अपनी स्थिति
तो पाता है
कि मुड़ चुकी है
इच्छाओं वाली पटरी भी
उतने ही कोण पर
बरकरार रखते हुए
प्राप्त और वांछित के बीच की
न्यूनतम निर्धारित दूरी को

क्या कभी मिल पाएँगी
जीवन की ये पटरियाँ

शायद तब तक नही
जब तक की
जीवन के आख़िर मे
मृत्यु की एक लंबवत रेखा
ख़त्म नही कर देती
इन पटरियों की
निरंतरता को.......

आइस पाइस






ये अजीब ज़्यादती है उसकी
नज़रों के इस खेल मे
हमेशा मुझे ही बनना पड़ता है
चोर
और इस खेल मे
कितनी माहिर है वो
ये तो आप
इस बात से ही समझ जाएँगे
कि जब भौतिक संसार के
हर कोने मे
बड़ी बड़ी आँखें करके
बदहवास सा ढूँढ रहा होता हूँ
उसे मैं
तभी वो
मन के एक कोने से निकलकर
अचानक मेरे सिर पर
मारती है टीप
मैं चोर का चोर ही बना रहता हूँ
और वो यूँ ही आज़ाद


कभी कभी यूँ ही
एक ख़याल उठता है मन मे
कि अगर कभी
मैं बैठ जाऊँ चुपचाप
और छोड़ दूँ उसे ढूँढना
(जो यूँ तो संभव नही असल मे)
तो क्या उसके मन मे भी
उठेगी ये ख्वाहिश
कि मैं किसी भी तरह
ढूँढ लूँ उसे
और बोल दूं
आइस पाइस

Thursday, May 3, 2012

सारे ख्वाब हमारे तेरी आँखों मे

सेहरा और मझधारे तेरी आँखों मे
दरिया मीठे खारे तेरी आँखों मे


उबर सका ना कोई इनमे जो उतरा
डूबे साहिल सारे तेरी आँखों मे


रोशन हो जाता है जग जब नैन खुलें
चंदा सूरज तारे तेरी आँखों मे


अंबर का विस्तार समाया है इनमे
उड़ते पंछी हारे तेरी आँखों मे


बिन इनके इक कदम भी चलना मुश्किल है
मेरे सभी सहारे तेरी आँखों मे


मेरे हर इक ख्वाब की मंज़िल हैं ये ही
सारे ख्वाब हमारे तेरी आँखों मे


मंदिर की हर गूँज अज़ानें मस्ज़िद की
गिरजा और गुरुद्वारे तेरी आँखों मे


Friday, March 2, 2012

गीता

पाप को पूजना
और पुण्य पर
पत्थर फेंकना
ये अँधा दौर
सिर्फ़ मुखौटों को पूजता है

धर्म बंदी है
धनवान की तिजोरी मे
डर जाता है
रात का तिमिर भी
मनुष्य के मन के
अंधकार को देखकर

बूढ़ा सूरज
अब भेद नही पाता
पाप पल रहा है
काले सायों से सराबोर
भूखी बस्तियों मे
हर मस्तिष्क मे
एक षड्यंत्र है

शासन अब
शुभचिंतक के नही
शैतान के हाथ मे है
और वो सब
जो दावा करते हैं
सत्ता का विकल्प बनने का
उनके भी हाथ
रंगे हुए हैं
रक्त से

ऐसी घनघोर कालिमा से ही तो
जनमते हो तुम
क्या ये ज़रूरी है
कि जब दुनिया
नष्ट होने की कगार पर हो
तभी रक्खो तुम पाँव
इस ज़मीन पर

हमे तुम्हारी ज़रूरत है कृष्ण
संसार की भटकती हुई
समझ को
फिर से सही दिशा मे
मोड़ने के लिए
हमे ज़रूरत है कृष्ण
एक नयी गीता की

Monday, January 16, 2012

ताज़ा खबर है

ताज़ा खबर है
कि अब
कच्ची ही रहेंगी
बस्तियों की झोपड़ियाँ
क्योंकि रोक लेंगी
धूप का सारा रास्ता
हर तरफ फैलती हुई
ऊँची इमारतें
अब और भी होंगे पक्के
उनके रंग
सोखकर
ग़रीब बस्तियों के
हिस्से की धूप

ताज़ा खबर है
कि अब
ऊँची इमारतों की छत पर
खुदा की खातिर बनेगे
हैलीपैड
सुना है कि खुदा
अब पाँव नही करेगा मैले
धूल और कीचड़ से सनी
संकरी गलियों मे जाकर

ताज़ा खबर है
कि नयी व्यवस्था मे
अब कोई नही होगा
मसीहा
कमज़ोरों का

Tuesday, January 3, 2012

एक्सट्रा

ख्वाब की बहुमंज़िला इमारत मे
मैं जोड़ता रहता हूँ
और भी मंज़िलें
जब रात के झुरमुटे मे
ठंडी हवाओं के सहलाते हुए हाथ
मुझे ले जाते हैं
मन के भीतर की
उस दूसरी दुनिया मे

मगर दिन के उजाले मे
जब एक दस्तक पर
मैं खोलता हूँ आँखों का दरवाजा
तो वहाँ खड़ी होती है हक़ीक़त
हाथ मे एक
तेज़ धूप वाली टॉर्च लिए

कुछ पल लगते हैं
आँखों को
उस लगभग अँधा करती धूप का
आदी हो जाने मे
और उसके बाद
जब देखता हूँ गौर से
तो पड़ता है मालूम
कि हक़ीक़त अकेले नही आई है
बल्कि उसके साथ आए हैं
नगर निगम के उस दस्ते की तरह
बड़े बड़े बुलडोज़र
(अवैध निर्माण तोड़ने वाले)

बस फिर शायद
मिनट भर भी नही लगता
दिल पे हाथ रखकर
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
तो पता चलता है
कि मिट्टी मे मिल चुकी हैं
बहुमंज़िला इमारत की
बहुत सी मंज़िलें

और उसके बाद
थमाया जाता है एक नोटिस
मैडम हक़ीक़त के दस्तख़त वाला
''कि आपकी हद इतनी ही है''

बड़ी सख़्त हैं ये मैडम
अपने काम मे
बातचीत की
कोई गुंज़ाइश नही रखती
और हमे अपनी इमारत मे
एक ईंट भी नही लगाने देती
एक्सट्रा