पाप को पूजना
और पुण्य पर
पत्थर फेंकना
ये अँधा दौर
सिर्फ़ मुखौटों को पूजता है
धर्म बंदी है
धनवान की तिजोरी मे
डर जाता है
रात का तिमिर भी
मनुष्य के मन के
अंधकार को देखकर
बूढ़ा सूरज
अब भेद नही पाता
पाप पल रहा है
काले सायों से सराबोर
भूखी बस्तियों मे
हर मस्तिष्क मे
एक षड्यंत्र है
शासन अब
शुभचिंतक के नही
शैतान के हाथ मे है
और वो सब
जो दावा करते हैं
सत्ता का विकल्प बनने का
उनके भी हाथ
रंगे हुए हैं
रक्त से
ऐसी घनघोर कालिमा से ही तो
जनमते हो तुम
क्या ये ज़रूरी है
कि जब दुनिया
नष्ट होने की कगार पर हो
तभी रक्खो तुम पाँव
इस ज़मीन पर
हमे तुम्हारी ज़रूरत है कृष्ण
संसार की भटकती हुई
समझ को
फिर से सही दिशा मे
मोड़ने के लिए
हमे ज़रूरत है कृष्ण
एक नयी गीता की
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