मुझे
एक सा अचंभित करती हैं
अंधेरे का हर भेद
खोल के रख देने वाली
सूरज की निर्दयी धूप
या फिर
सिर्फ़ अपने होने का
कोमल आभास कराने वाली
जुगनू की टिम टिम रोशनी
दुविधा ये है
कि होने की चाह मे दोनो
मैं हो नही पाता हूँ
कुछ भी
एक सा अचंभित करती हैं
अंधेरे का हर भेद
खोल के रख देने वाली
सूरज की निर्दयी धूप
या फिर
सिर्फ़ अपने होने का
कोमल आभास कराने वाली
जुगनू की टिम टिम रोशनी
दुविधा ये है
कि होने की चाह मे दोनो
मैं हो नही पाता हूँ
कुछ भी