तुम्हारे तरस के जोंक
जब रेंगते हैं मेरे जिस्म पर
तो घिन सी आ जाती है
मुझे अपने पे
हर रोज़
मैं नोचता हूँ इन्हे
अपने जिस्म से
और फेंक देता हूँ बाहर
मगर हर रोज़
मेरा भला चाहने वाले
कुछ लोग
अनजाने मे ही
गुलदस्ते मे भरकर
उन्हे फिर ले आते हैं
मेरे पास
जोंकों से भर गया है
मेरा सारा कमरा
सच मे
दुनिया कितनी बेरहम है
तरस भी खाती है
तो सारा खून
चूस लेती है.............
wah.
ReplyDeleteshukriya aapka
Deleteamazing.. hatz off bro.
ReplyDeletethanks deepali
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