थोड़ा सा ग़म उधार दे दो ना
झिड़की,कोई धिक्कार दे दो ना
मिट्टी हूँ मैं और तुम कुम्हार हो
मुझको कोई आकार दे दो ना
बिकने को हूँ तैय्यार मैं बनके
मुझको कोई घर-बार दे दो ना
यूँ रूठ के जाओ नही,चाहे
लानते हज़ार दे दो ना
ता-उम्र मैं बगैर घर रही
मरने पे एक मज़ार दे दो ना
पिंजरे से इक पंछी को उड़ाकर
आकाश का विस्तार दे दो ना
नफ़रत ना उगाओ मेरे यारों
बच्चों को ज़रा प्यार दे दो ना
बीमार माँ के लिए चोरी की
माफी इसे सरकार दे दो ना
बहुत खूब ग़ज़ल कही है. ये शेर बहुत पसंद आये......
ReplyDeleteमिट्टी हूँ मैं और तुम कुम्हार हो
मुझको कोई आकार दे दो ना..........
पिंजरे से इक पंछी को उड़ाकर
आकाश का विस्तार दे दो ना
बीमार माँ के लिए चोरी की
माफी इसे सरकार दे दो ना
umda ghazal
ReplyDeleteबीमार माँ के लिए चोरी की
माफी इसे सरकार दे दो ना