हम तो उठते ही
सुबह सुबह पी लेते हैं चाय
करने के लिए दूर
रात की खुमारी को
मगर सूरज
चाय नही पीता
तो जानती हो
वो कैसे भगाता है
अपनी अधखुली आँखों से
बची-खुची नींद को
उठने के साथ साथ
वो सबसे पहले चूमता है
तुम्हारा माथा
अब समझ आया
कि अभी जब
सुस्ता ही रहा होता है
अंधेरा
मोहल्ले के बाकी घरों मे
तो कैसे तुम्हारी खिड़की पर
खेलने लगती हैं
ऊषा की किरणें
क्योंकि
तुमसे ही पाता है
सूरज
अंधकार से
लड़ने की ऊर्जा
nice
ReplyDeleteक्योंकि
ReplyDeleteतुमसे ही पाता है
सूरज
अंधकार से
लड़ने की ऊर्जा
बहुत खूब योगेश!
sabas verey nice.
ReplyDelete