होश की देहरी पार हुई कब क्या मालूम
उनसे आँखें चार हुई कब क्या मालूम
जिस सूरत पर मर बैठे हम क्या जानें
क्या थे उसके ज़ात-ओ-मज़हब क्या मालूम
यूँ तो याद नही आता है गुनाह कोई
रूठ गया क्यों मुझसे वो रब क्या मालूम
याद है बस इतना कि तू था ख्वाबों मे
कैसे गुज़री रात कहाँ कब क्या मालूम
चैन की नींदें होश के छींटें और सुकून
कैसे उसने लूटा ये सब क्या मालूम
धुन जब लागी यार से जाके मिलने की
कैसे दरिया पार हुआ कब क्या मालूम
वाह योगेश, सब शेर बहुत ही गहरें हैं. कौन सा quote करूँ, मुश्किल काम है
ReplyDeleteये दो बहुत ही खूबसूरत लगे!
चैन की नींदें होश के छींटें और सुकून
कैसे उसने लूटा ये सब क्या मालूम
धुन जब लागी यार से जाके मिलने की
कैसे दरिया पार हुआ कब क्या मालूम