होश एक कीड़ा है
और नींद छिपकली
मौका पाते ही
निगल जाती है
चट से
मगर कभी कभी
जब होश पी लेता है
तुम्हारी याद
तो बिचारी छिपकली
लाख पैतरों के बावज़ूद
छू भी नही पाती
उस कीड़े की परछाईं को
सुबह होने तक
भूख से तड़प कर
दम तोड़ चुकी होती है
बिचारी छिपकली
कभी कभी
मुझे डर लगने लगता है
कि कहीं तुम्हारी याद
फेरबदल ना कर दे
होश,नींद और मेरे
जीवन-चक्र मे
oh my gosh bhai....kya dangerous likha hai :p
ReplyDeletebohot hi kamaal ki nazm hai
hahahaha....jab keede maode janwar pakdte ho..kamaal karte ho... :)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नज़्म!
ReplyDeleteउपमा अलंकार का 'खतरनाक' प्रयोग किया है ;-)
मोहोबत हकीकत के शोर को भी खा गयी ....
ReplyDeleteपहेले कभी नींद न आने से दुखी थे आप जनाब
अब बचपन की नींद का लुफ्त जगती आँखों से उठाया जा रहा है ...