
उत्साह का
अथाह सोता है
तुम्हारे भीतर
जिसके सामने
खुद वक़्त भी
हो जाता है नतमस्तक
क्योंकि
तुम्हारी जीवंतता मे तो
वो भी नही पैदा कर सका
एक भी झुर्री
सिनेमा के उस छोर से
इस छोर तक
किसी गाइड की तरह
तुम्हारी उपस्थिति
जीने की जिजीविषा
पैदा करती है
हमारे भीतर
रुपहले पर्दे पर
अपने ही अंदाज़ मे
निभाए हुए
तुम्हारे किरदारों को देखना
हर बार
भर जाता है हमे
आनंद से भरपूर
अनुभवों से
जीवन के
इस अथक प्रेम पुजारी
देव आनंद साहब को
मेरा सलाम