Thursday, October 20, 2011

मातृत्व

बचपन की धुंधली यादों मे से
एक याद ये भी है
कि गर्मी की रातों मे
घर की छत पर
जब हवा का जी नही होता था
बहने का
तो माँ अपने बगल मे लिटाकर
हमे हाथ वाले पंखे से
करती थी हवा
और बस कुछ ही देर मे
रूठी हुई नींद
फिर से बन जाती थी
हमारी दोस्त

यूँ तो हमेशा ही वो गहरी नींद
सुबह माँ के सहलाते हुए
हाथों से ही खुलती थी
मगर कभी कभार
जब आधी रात को
यूँ ही खुल जाती थी आँख
तो मैं देखता था
माँ की तरफ
मुंदी होती थीं माँ की आँखें
मगर फिर भी
माँ के हाथ का वो पंखा
हिलता रहता था हमारी ओर

माँ सो भी रही होती है जब
तो भी जागता रहता है
उसका मातृत्व