Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल

नींद गई उस देस सजनवा
गये हो तुम जिस देस सजनवा

राह तके पथराईं आँखें
लौटो अब इस देस सजनवा

बिरहा हमे डराये धरकर
अँधियारे का भेस सजनवा

अँसुवन संग धुँधलाई पाती
भेजो फिर संदेस सजनवा

रूठे पायल बिंदी बिछिया
कंगन काजल केस सजनवा

सौतन बन बैठा है हमरी
तुम्हरा ये परदेस सजनवा

Friday, May 11, 2012

पटरियाँ

जो है
और जो होना चाहिए
पटता नही है
उसके बीच का फ़र्क
हज़ार कोशिशों के बाद भी
रेल की दो समानांतर
पटरियों के फ़ासले सा

आदमी
अपने अथक प्रयासों से
देता है अपने वर्तमान को
एक मुश्किल मोड़
पहुँचने की आस मे
अपनी इच्छाओं के
ऐच्छिक बिंदु पर
और हर बार
ऐसा करने के बाद
जब वो देखता है अपनी स्थिति
तो पाता है
कि मुड़ चुकी है
इच्छाओं वाली पटरी भी
उतने ही कोण पर
बरकरार रखते हुए
प्राप्त और वांछित के बीच की
न्यूनतम निर्धारित दूरी को

क्या कभी मिल पाएँगी
जीवन की ये पटरियाँ

शायद तब तक नही
जब तक की
जीवन के आख़िर मे
मृत्यु की एक लंबवत रेखा
ख़त्म नही कर देती
इन पटरियों की
निरंतरता को.......

आइस पाइस






ये अजीब ज़्यादती है उसकी
नज़रों के इस खेल मे
हमेशा मुझे ही बनना पड़ता है
चोर
और इस खेल मे
कितनी माहिर है वो
ये तो आप
इस बात से ही समझ जाएँगे
कि जब भौतिक संसार के
हर कोने मे
बड़ी बड़ी आँखें करके
बदहवास सा ढूँढ रहा होता हूँ
उसे मैं
तभी वो
मन के एक कोने से निकलकर
अचानक मेरे सिर पर
मारती है टीप
मैं चोर का चोर ही बना रहता हूँ
और वो यूँ ही आज़ाद


कभी कभी यूँ ही
एक ख़याल उठता है मन मे
कि अगर कभी
मैं बैठ जाऊँ चुपचाप
और छोड़ दूँ उसे ढूँढना
(जो यूँ तो संभव नही असल मे)
तो क्या उसके मन मे भी
उठेगी ये ख्वाहिश
कि मैं किसी भी तरह
ढूँढ लूँ उसे
और बोल दूं
आइस पाइस

Thursday, May 3, 2012

सारे ख्वाब हमारे तेरी आँखों मे

सेहरा और मझधारे तेरी आँखों मे
दरिया मीठे खारे तेरी आँखों मे


उबर सका ना कोई इनमे जो उतरा
डूबे साहिल सारे तेरी आँखों मे


रोशन हो जाता है जग जब नैन खुलें
चंदा सूरज तारे तेरी आँखों मे


अंबर का विस्तार समाया है इनमे
उड़ते पंछी हारे तेरी आँखों मे


बिन इनके इक कदम भी चलना मुश्किल है
मेरे सभी सहारे तेरी आँखों मे


मेरे हर इक ख्वाब की मंज़िल हैं ये ही
सारे ख्वाब हमारे तेरी आँखों मे


मंदिर की हर गूँज अज़ानें मस्ज़िद की
गिरजा और गुरुद्वारे तेरी आँखों मे