Thursday, August 27, 2009

बोरियत

ये बोरियत
मुझ अकेले की नही है
बल्कि उन तमाम
इंसानों की है
जिनका मान इस वक़्त
उनके साथ नही है
जिनका मन
देह के ना जाने कौन से
भीतरी कोने मे जाके
दुबक गया है

जैसे कभी कभी
चिड़ियाघर का मंगल
(कानपुर के चिड़ियाघर के बनमानुष का नाम)
अपने बाड़े के भीतर
सुरक्षित स्थान मे चला जाता है
(जहाँ उसे खाना दिया जाता है)
देखने वाले
उसे बाहर बुलाने के लिए
तरह तरह के
प्रयत्न करते हैं
जैसे आवाज़ें करना
पत्थर फेंकना
(ये सब अपराध हैं,ध्यान रहे)
मगर खाना खाकर
सुस्ताते मंगल को
उठा पाना
इतना आसान नही होता

कुछ इसी तरह से
एक ओर मुँह करके
पसर गया है
मेरा मन
दिक्कत ये है
कि शरीर जाग रहा है
अब भी

बोरियत अलग है
दुख से
और कभी कभी
दुख से भयानक भी
बोर आदमी
ना तो किसी को याद करता है
और ना ही
उसे किसी की
याद ही आती है
बोरियत मे
शायद शिथिल हो जाता है
यादों के सिग्नल को
आदान-प्रदान करने वाला
सूचना-तंत्र

बोरियत
सुख और दुख के बीच की
एक ऐसी
भावहीन अवस्था है
जिसमे हम और आप
जैसे लोग
ज़्यादा देर नही रह सकते

हाँ,
पर कुछ महान लोग होते हैं
जो बोरियत की
इस अवस्था मे भी
घंटों,बगैर विचलित हुए
रह सकते हैं
उदाहरण के तौर पर
सरकारी दफ़्तर के वो बाबू
जिनका चश्मा
सीधी रेखा से
45 डिग्री का कोण बनाते हुए
फाइलों की ओर
झुका रहता है
उनके सामने आप
कितनी ही नाक रगड़ लो
मगर उनकी कलम
अघोषित तय दाम के
चुकता होने से पहले
आपके काग़ज़ पर
एक चींटी जितना भी
नही रेंगती
ये उनकी बोरियत के
स्थायित्व का
साक्षात उदाहरण है
बोरियत मे शायद
ख़त्म हो जाता है
''अचरज'' का भाव

अरे अरे ये क्या
मैने चार बातें क्या कह दी
आप तो मुझसे ही पूछने लगे
बोरियत को दूर करने का उपाय
अब आप ही बताइए
अगर मुझे मालूम होता
तो क्या मैं
ये कविता लिखने जैसा
बोर काम लेकर बैठता?

हाँ,लेकिन मेरा
एक फायदा तो हो गया
कविता का नाम सुनकर
मेरा मंगल जाग गया है
और अब बाड़े मे आकर
खूब करतब दिखा रहा है

मेरा तो काम हो गया
दोस्तों
माफ़ करना
आपको
खामख़ाँ
बोर कर दिया...........................

मदद

किसी को
की हुई मदद के
गिनवाते ही
ख़त्म हो जाता है
उस मदद से मिलने वाले
पुण्य का लाभ
ऐसा करते ही
आपका बड़प्पन
(जो आपके मन का
बनाया हुआ
एक छद्म भर है)
ध्वस्त हो जाता है
और आप
उसी व्यक्ति के
समानांतर आ जाते हैं

इसलिए
मदद करने से पहले
हमे भूल जाना होगा
भविष्य मे कभी
उस मदद को
गिनवाने के लोभ को
क्योंकि बदले मे
कुछ चाहने की
इच्छा रखने वाली मदद
मदद नही होती
बल्कि सिर्फ़
मज़बूरियों का
सौदा होती है.................

सीधा आदमी

हर सीधा आदमी
कमज़ोर नही होता
(जैसी की शायद
आम धारणा है)

सीधे को कमज़ोर कहकर
शायद वो लोग
जो न्याय और मानवता
के रास्तों से
बचकर चलते हैं
अपने उस निर्णय को
तर्कसंगत साबित करने की
कोशिश करते हैं
जिसमे उन्होने
अपने मन की कचहरी मे
अपने भीतर के
उस सीधे आदमी को
फाँसी पे लटकाने का
आदेश दिया था
क्योंकि उसको
फाँसी होने से पहले
वही सीधा आदमी
आड़े आता था
छल के द्वारा
हथियाई गयी
सफलता के बीच मे

ऐसा शायद
इसलिए संभव हो पाता है
कि जिस तालिबानी व्यवस्था का
हम वाह्य रूप से
पुरज़ोर विरोध करते हैं
कहीं ना कहीं
उसी व्यवस्था का
एक अंश
पल रहा है
हमारे भीतर भी
तभी तो
उस सीधे आदमी को
फाँसी देते हुए
हमे ज़रा भी
झिझक नही होती

आपके सामने
खड़ा हुआ
तथाकथित
सीधा आदमी
ज़रूरी नही की
कमज़ोर हो
वो साहित्यकार
भी हो सकता है
और अगर आपकी किस्मत
ज़्यादा ही खराब हुई
तो फिर वो
पत्रकार भी हो सकता है

और आजकल
पत्रकार ही तो
कमज़ोर आँखों वाली
न्याय प्रणाली को
उंगली पकड़ाकर
पहुँचाते हैं
आप जैसे
अपने भीतर के
सीधे आदमियों के
क़ातिलों के
गिरेबान तक................

दीमक

बड़ी ढीठ है
तुम्हारे ख़याल की दीमक
दिन रात खाती रहती है
मुझे भीतर ही भीतर
जब तक बाहर रहता हूँ
बात करता हूँ लोगों से
तब तक
कुछ नही पड़ता है मालूम

मगर जैसे ही
अकेला पड़ता हूँ मैं
साफ सुनाई देती है
इस शैतानी दीमक की आवाज़

तुम्हारे ख़याल की ये दीमक
खोखला कर रही है
मेरी देह को

लोग कहते हैं
की धूप दिखाने से
भाग जाती है दीमक
मगर तुम्हारे रूप का सूरज
तो अब उगता ही नही है
हमारी गली मे

अब मेरी समझ मे आया
की विरह मे पागल लोग
क्यों पी लेते हैं
कीड़े मारने की दवा...........

Tuesday, August 11, 2009

गम-ए-दुनिया तो कम नही होता

इश्क़ ये आदतन नही होता
यूँ ही कोई सनम नही होता

इश्क़ होता है या नही होता
उसमे कोई वेहम नही होता

कोई साजिश है जहन मे उसके
वस्ल यूँ दफ्फतन नही होता

ग़रीब से ना छीनकर खाओ
ये निवाला हजम नही होता

आपने आँख फेरी है जबसे
समंदर ये ख़तम नही होता

दिल से तुमने बुरा नही चाहा
तैरता हूँ,दफ़न नही होता

दिल ये मानेगा नही बिन-तेरे
जब तलक सर कलम नही होता

उसकी हर याद मिटा दी मैने
एक चेहरा ख़तम नही होता

अब वो रोता नही तो मोहल्ला
कहता है उसको गम नही होता

बावरे,सिर्फ़ तेरे लिखने से
गम-ए-दुनिया तो कम नही होता