Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल

नींद गई उस देस सजनवा
गये हो तुम जिस देस सजनवा

राह तके पथराईं आँखें
लौटो अब इस देस सजनवा

बिरहा हमे डराये धरकर
अँधियारे का भेस सजनवा

अँसुवन संग धुँधलाई पाती
भेजो फिर संदेस सजनवा

रूठे पायल बिंदी बिछिया
कंगन काजल केस सजनवा

सौतन बन बैठा है हमरी
तुम्हरा ये परदेस सजनवा

4 comments:

  1. रूठे पायल बिंदी बिछिया
    कंगन काजल केस सजनवा

    hmmmmmmmmmm.........just beautiful.....

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  2. Bahut hi achhi ghazal hai bhai! :)

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  3. folk rang me rangi bahut pyaari gazal ...

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