Friday, May 11, 2012

आइस पाइस






ये अजीब ज़्यादती है उसकी
नज़रों के इस खेल मे
हमेशा मुझे ही बनना पड़ता है
चोर
और इस खेल मे
कितनी माहिर है वो
ये तो आप
इस बात से ही समझ जाएँगे
कि जब भौतिक संसार के
हर कोने मे
बड़ी बड़ी आँखें करके
बदहवास सा ढूँढ रहा होता हूँ
उसे मैं
तभी वो
मन के एक कोने से निकलकर
अचानक मेरे सिर पर
मारती है टीप
मैं चोर का चोर ही बना रहता हूँ
और वो यूँ ही आज़ाद


कभी कभी यूँ ही
एक ख़याल उठता है मन मे
कि अगर कभी
मैं बैठ जाऊँ चुपचाप
और छोड़ दूँ उसे ढूँढना
(जो यूँ तो संभव नही असल मे)
तो क्या उसके मन मे भी
उठेगी ये ख्वाहिश
कि मैं किसी भी तरह
ढूँढ लूँ उसे
और बोल दूं
आइस पाइस

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