Friday, March 2, 2012

गीता

पाप को पूजना
और पुण्य पर
पत्थर फेंकना
ये अँधा दौर
सिर्फ़ मुखौटों को पूजता है

धर्म बंदी है
धनवान की तिजोरी मे
डर जाता है
रात का तिमिर भी
मनुष्य के मन के
अंधकार को देखकर

बूढ़ा सूरज
अब भेद नही पाता
पाप पल रहा है
काले सायों से सराबोर
भूखी बस्तियों मे
हर मस्तिष्क मे
एक षड्यंत्र है

शासन अब
शुभचिंतक के नही
शैतान के हाथ मे है
और वो सब
जो दावा करते हैं
सत्ता का विकल्प बनने का
उनके भी हाथ
रंगे हुए हैं
रक्त से

ऐसी घनघोर कालिमा से ही तो
जनमते हो तुम
क्या ये ज़रूरी है
कि जब दुनिया
नष्ट होने की कगार पर हो
तभी रक्खो तुम पाँव
इस ज़मीन पर

हमे तुम्हारी ज़रूरत है कृष्ण
संसार की भटकती हुई
समझ को
फिर से सही दिशा मे
मोड़ने के लिए
हमे ज़रूरत है कृष्ण
एक नयी गीता की