Wednesday, July 11, 2012

बेवजह ही वो गया मर, याद है अब तक

















खून मे लथपथ थे खंज़र, याद है अब तक
हू-ब-हू हमको वो मंज़र, याद है अब तक


आग मे जलते हुए घर, याद है अब तक
धूल के उड़ते बवंडर, याद है अब तक

हर कोई ज़िंदा था जो उसकी निगाहों मे
कांपता था ख़ौफ़ थर थर, याद है अब तक

दुधमुँहे को अपनी छाती से लगा करके
एक माँ दौड़ी थी दर दर, याद है अब तक

नफ़रतों ने क़ौम की जिसको जला डाला
पीढ़ियों के प्यार का घर, याद है अब तक

रहनुमा के कान मे जूँ तक नही रेंगी
हो गये थे खुदा पत्थर, याद है अब तक

दास्ताँ सरकार की जो फाइलों मे है
चीख थी उससे भयंकर, याद है अब तक

वो जो मंदिर मे भी,मस्जिद मे भी मिलता था
बेवजह ही वो गया मर, याद है अब तक