Saturday, August 20, 2011

गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने


किसने नींद उड़ाई दिल्ली वालों की
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने
किसने अलख जगाई कुछ कर जाने की
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने

अपने प्यारे भारत की बुनियादों मे
पनप रही है दीमक भ्रष्टाचारों की
लेकिन एक हज़ारे की आवाज़ों पर
जुट आई है देखो भीड़ हज़ारों की
किसने छोड़ के फूलों का पथ इच्छा से
देश की खातिर राह चुनी अंगारों की
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने

गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने
पिरो दिया है एक सूत्र मे भारत को
इससे पहले तो बस सबने बाँटा है
भाँति भाँति के भेदभाव मे भारत को
किसने दिखा दिया कि गर हम एक हों तो
तोड़ नही सकता है कोई भारत को
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने

चेहरे पर मुस्कान है जिसके सच्ची सी
मन मे एक विश्वास बड़ा ही पुख़्ता है
देश की हालत देख के जिसके सीने मे
दर्द बड़ा ही गहरा कोई उठता है
किसने अपनी करनी से ये दिखा दिया
सत्य अहिंसा से पर्वत भी झुकता है
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने

किसने नींद उड़ाई दिल्ली वालों की
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने
किसने अलख जगाई कुछ कर जाने की
गाँधी टोपी वाले एक सिपाही ने

Wednesday, August 17, 2011

गुलज़ार


तुमने
एक पूरा बगीचा
उगाया हुआ है
अपने भीतर
अपनी बागवानी से
पैदा की हैं
फूलों की नयी नयी किस्में
जादू है तुम्हारे हाथों मे
जो हर बार
फूलों मे
नया रंग भर देता है
कौन सा पानी देते हो इन्हे
कैसी है वो मिट्टी
जहाँ पनपते हैं
ये फूल

तुम
जो भी लिख देते हो
वो फूल सा महकने लगता है
और उसकी वो महक़
इतनी ख़ास होती है
हमारे लिए
कि दुनिया भर के
इत्र
फीके पड़ जाते हैं
उस महक़ के आगे

हो भी क्यूँ ना
सुखन के गुलों के
बादशाह हो तुम
बाकी सब तो सब हैं
मगर गुलज़ार हो तुम

किसी रोज़
अपने बगीचे के
किसी भी पौधे से
एक कलम काटकर
मेरे भी सीने मे
बो देना............

(GULZAR SAAB KO JANMDIN KI BAHUT BAHUT BADHAI)

Tuesday, August 9, 2011

ग़ज़ल

आरज़ूएँ तमाम करता है
मन भी कैसा गुलाम करता है

ख्वाब लाता है हर इक रोज़ नये
सुक़ूँ का क़त्ल-ए-आम करता है

बात जब भी करे तो चिंगारी
गुफ़्तगू कब ये आम करता है

हमे तो पूछता नही दिन भर
वो जो आएँ सलाम करता है

मेरी आँखों से चुराकर नींदें
जाने किस किस के नाम करता है

गर कभी मुश्किलों मे हो जाँ तो
रात दिन राम राम करता है