Tuesday, August 9, 2011

ग़ज़ल

आरज़ूएँ तमाम करता है
मन भी कैसा गुलाम करता है

ख्वाब लाता है हर इक रोज़ नये
सुक़ूँ का क़त्ल-ए-आम करता है

बात जब भी करे तो चिंगारी
गुफ़्तगू कब ये आम करता है

हमे तो पूछता नही दिन भर
वो जो आएँ सलाम करता है

मेरी आँखों से चुराकर नींदें
जाने किस किस के नाम करता है

गर कभी मुश्किलों मे हो जाँ तो
रात दिन राम राम करता है

1 comment:

  1. सुन्दर रचना, बहुत सार्थक प्रस्तुति
    , स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

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