बचपन की धुंधली यादों मे से
एक याद ये भी है
कि गर्मी की रातों मे
घर की छत पर
जब हवा का जी नही होता था
बहने का
तो माँ अपने बगल मे लिटाकर
हमे हाथ वाले पंखे से
करती थी हवा
और बस कुछ ही देर मे
रूठी हुई नींद
फिर से बन जाती थी
हमारी दोस्त
यूँ तो हमेशा ही वो गहरी नींद
सुबह माँ के सहलाते हुए
हाथों से ही खुलती थी
मगर कभी कभार
जब आधी रात को
यूँ ही खुल जाती थी आँख
तो मैं देखता था
माँ की तरफ
मुंदी होती थीं माँ की आँखें
मगर फिर भी
माँ के हाथ का वो पंखा
हिलता रहता था हमारी ओर
माँ सो भी रही होती है जब
तो भी जागता रहता है
उसका मातृत्व
too good!!!
ReplyDeleteहम सब की ऐसी कोई न कोई याद है!
ReplyDeleteबहुत खूब!
shukriya bhai
Deletetooooo goooooddd ....vakt k saath soye ehsaas ko jagane ka shukriyaa :)
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