Tuesday, December 30, 2014

चीज़ का आधिक्य नही
बल्कि ढेर प्रयत्नो के बाद
उस चीज़ की प्राप्ति
भरती है हममे प्रसन्नता

Friday, December 26, 2014

प्रगति-एक दृश्य

बड़ी चौड़ी सड़क के
बीचों बीच
डिवाइडर पर रोपे गये
पौधों पर तो
खिल आए हैं फूल
मगर वहीं डिवाइडर के पास
बड़ी बड़ी शीशाबंद गाड़ियों से
भीख माँगते बच्चों के
बिना चप्पल के नंगे पैरों को
अब भी चाट रही है
ज़मीन की
बेहद ठंडी ज़ीभ


yogesh dhyani
एक नज़्म
नही मैं अभी तक भी भूला नही हूँ
मुझे ताकती टकटकी वो तुम्हारी

दीवारों पे अब भी टॅंगी ही हुई हैं
कॅलंडर के जैसी वो आँखें तुम्हारी
कई बार तुड़वा के देखा है इनको
मगर हर दीवारों पे तुम हो तुम्ही हो
तुम्हारे ही हाथों मिटेगीं ये शायद
बस इतनी सी मिन्नत है इक बार आकर
इन्हे भर लो अपनी निगाहों मे वापस
वो हर याद जो भी है बिखरी यहाँ पर
पिटारी मे भरकर उसे पास रख लो
फँसा मुश्किलों मे है इमरोज़ मेरा

नही मैं अभी तक भी भूला नही हूँ
मुझे ताकती टकटकी वो तुम्हारी