और जो होना चाहिए
पटता नही है
उसके बीच का फ़र्क
हज़ार कोशिशों के बाद भी
रेल की दो समानांतर
पटरियों के फ़ासले सा
आदमी
अपने अथक प्रयासों से
देता है अपने वर्तमान को
एक मुश्किल मोड़
पहुँचने की आस मे
अपनी इच्छाओं के
ऐच्छिक बिंदु पर
और हर बार
ऐसा करने के बाद
जब वो देखता है अपनी स्थिति
तो पाता है
कि मुड़ चुकी है
इच्छाओं वाली पटरी भी
उतने ही कोण पर
बरकरार रखते हुए
प्राप्त और वांछित के बीच की
न्यूनतम निर्धारित दूरी को
क्या कभी मिल पाएँगी
जीवन की ये पटरियाँ
शायद तब तक नही
जब तक की
जीवन के आख़िर मे
मृत्यु की एक लंबवत रेखा
ख़त्म नही कर देती
इन पटरियों की
निरंतरता को.......
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