Thursday, August 27, 2009

सीधा आदमी

हर सीधा आदमी
कमज़ोर नही होता
(जैसी की शायद
आम धारणा है)

सीधे को कमज़ोर कहकर
शायद वो लोग
जो न्याय और मानवता
के रास्तों से
बचकर चलते हैं
अपने उस निर्णय को
तर्कसंगत साबित करने की
कोशिश करते हैं
जिसमे उन्होने
अपने मन की कचहरी मे
अपने भीतर के
उस सीधे आदमी को
फाँसी पे लटकाने का
आदेश दिया था
क्योंकि उसको
फाँसी होने से पहले
वही सीधा आदमी
आड़े आता था
छल के द्वारा
हथियाई गयी
सफलता के बीच मे

ऐसा शायद
इसलिए संभव हो पाता है
कि जिस तालिबानी व्यवस्था का
हम वाह्य रूप से
पुरज़ोर विरोध करते हैं
कहीं ना कहीं
उसी व्यवस्था का
एक अंश
पल रहा है
हमारे भीतर भी
तभी तो
उस सीधे आदमी को
फाँसी देते हुए
हमे ज़रा भी
झिझक नही होती

आपके सामने
खड़ा हुआ
तथाकथित
सीधा आदमी
ज़रूरी नही की
कमज़ोर हो
वो साहित्यकार
भी हो सकता है
और अगर आपकी किस्मत
ज़्यादा ही खराब हुई
तो फिर वो
पत्रकार भी हो सकता है

और आजकल
पत्रकार ही तो
कमज़ोर आँखों वाली
न्याय प्रणाली को
उंगली पकड़ाकर
पहुँचाते हैं
आप जैसे
अपने भीतर के
सीधे आदमियों के
क़ातिलों के
गिरेबान तक................

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