Wednesday, November 3, 2010

अपवाद

पता नही कैसे हुआ ये
मेरी ही लापरवाही थी शायद
कि हवा के एक तेज़ थपेड़े मे
वक़्त की उंगली छूट गयी मुझसे
फिर जो गुम हुआ
तो आज तक नही ढूँढ पाया
खुद को
वक़्त अब बहुत दूर निकल गया है
इतना की मैं अब उसकी
परछाईं भी नही छू पाता
दौड़ूँ तो भी
उस तक पहुँच पाने मे
संदेह होता है
वो सब जिन्होने
मेरे साथ शुरू किया था
अपना सफ़र
वो अब भी चल रहे हैं
वक़्त के साथ
कदम-ताल करते हुए
उनके चेहरों पर उग आई हैं
अनुभवों की दाढ़ी मूछें
उन्होने सीख लिए हैं
इस दुनिया के बाज़ार मे
खुद को स्थापित किए रखने के लिए
ज़रूरी हथकंडे

पता है
जब वक़्त की उंगली छूटी थी मुझसे
तब तक वो सिखा चुका था
मानवता के मूल नैतिक नियम
और मैने कंठस्थ भी कर लिए थे
सब के सब
मगर जीने के लिए
सिर्फ़ इतना जान लेना ही तो
काफ़ी नही था
ज़रूरी था
उन सारे अपवादों को जानना
जो वक़्त ने उंगली छूटने के बाद
बाकी सब को सिखाए थे
ये वो अपवाद हैं
जो ज़रूरत पड़ने पर
मानवता के
समस्त मूल नैतिक नियमों को
खारिज कर देते हैं..............

6 comments:

  1. सुंदर रचना योगेश जी ..शुभकामनाएं

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  2. बेहतरीन रचना...


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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  3. oye hoye...bawre bhai...naye look mein..... :)
    accha lag raha hai blog. aur nazm....wow...as usual, aap to mast hi likhte ho. sahi kaha, vo saare apvaad seekhne the...tabhi jiya ja sakta hai....amazing bhai :)

    long time....eid ka chaand ho gaye ho, kahan rehte ho

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  4. Yogesh bhai...bahut zabardast nazm kahi hai. Apki nazmon ki sabse badi khaasiyat yah hai ki pehle ek jahaa.N banaate ho aur fir ek jhatke mein dhool ke jaise udaa dete ho..Bahut khooob!!

    -Gaurav

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  5. बहुत बढ़िया नज़्म !

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