Thursday, August 27, 2009

दीमक

बड़ी ढीठ है
तुम्हारे ख़याल की दीमक
दिन रात खाती रहती है
मुझे भीतर ही भीतर
जब तक बाहर रहता हूँ
बात करता हूँ लोगों से
तब तक
कुछ नही पड़ता है मालूम

मगर जैसे ही
अकेला पड़ता हूँ मैं
साफ सुनाई देती है
इस शैतानी दीमक की आवाज़

तुम्हारे ख़याल की ये दीमक
खोखला कर रही है
मेरी देह को

लोग कहते हैं
की धूप दिखाने से
भाग जाती है दीमक
मगर तुम्हारे रूप का सूरज
तो अब उगता ही नही है
हमारी गली मे

अब मेरी समझ मे आया
की विरह मे पागल लोग
क्यों पी लेते हैं
कीड़े मारने की दवा...........

3 comments:

  1. man..amazing..
    kya baat hai bhaai..
    kya jabardast ending hai. hatz off...

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  2. अब मेरी समझ मे आया
    की विरह मे पागल लोग
    क्यों पी लेते हैं
    कीड़े मारने की दवा...........

    BAAR BAAR ISE MAIN PAD SAKTA HOON.....BAHUT KHOOB

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  3. bohot bohot mast hai....sacchi, its beautiful. mujhe bhi ye keede maarne ki dawa chahiye... ;)

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