इस बावरे को बेवजह,शोहरत तो मिल गयी
चाहत नही मिली तो क्या,नफ़रत तो मिल गयी
खुद को ज़रा समझने की,फ़ुर्सत तो मिल गयी
हाँ वफ़ा के चंद सिक्के बर्बाद हो गये
बेशुमार बेवफ़ाई की,दौलत तो मिल गयी
सब छीनने का वादा पूरा ना कर सके
इज़्ज़त नही मिली तो क्या,ज़िल्लत तो मिल गयी
हैरत का हमे कोई तजुर्बा ही नही था
तुमको बदलते देखकर, हैरत तो मिल गयी
नादान था,तुझमे खुदा को देखता था मैं
ग़म मे तेरे खुदा की,इबादत तो मिल गयी
मुझको किसी ने आज तक देखा नही था यूँ
मुझको तेरी नज़र मे,बग़ावत तो मिल गयी
सब छीन लिया मुझसे जो कुछ भी दिया था
इक याद बस रखने की,इजाज़त तो मिल गयी
ग़म ने तेरे सिखाया था लिखने का ये हुनर
इस बावरे को बेवजह,शोहरत तो मिल गयी
achhi ghazal...........
ReplyDeletebadhai!
are bhai kya likh diya aapne ...
ReplyDeletebas aansu nahi nikle yahi khairiyat hai...
bahut hi shaandaar aur jaandaar gazal....
चाहत नही मिली तो क्या,नफ़रत तो मिल गयी
ReplyDeleteखुद को ज़रा समझने की,फ़ुर्सत तो मिल गयी
sabhi sher sunder , khubsurat rachna ke liye badhai.