Friday, May 15, 2009

ग़ज़ल

शौकिया हमने साँप पाले हैं

ज़हर बुझे ये दाँत वाले हैं

फिर से कोई बुरी खबर आई

हाथ मे रह गये निवाले हैं

जवाब मे हमारी उलफत के

उन्होने असलहे निकले हैं

ज़ुर्म मेरा तो एक ही था मगर

तुमने बदले कई निकले हैं

ऊम्र भर घूस जिन्होने खाई

आज उनकी जबां मे छाले हैं

फिर नया ख्वाब बुना है उसने

आज फिर उसकी जाँ के लाले हैं

नूर रहता था कभी आँखों मे

आज क्यूँ वहाँ सिर्फ़ जाले हैं

भूख पर भी कोई लगाम कसे

राशनों पर तो पड़े ताले हैं

बावरे,खुद को समझता क्या है

तेरे खातों मे भी घोटाले हैं

12 comments:

  1. yogesh ji
    aaj pahli baar aapke blog par aayi hoon
    bahut prabhavshali ghazal likhi hai aapne
    bahut abha laga aapko padhna.
    khush rahain
    nira

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  2. shandar aur jaandar ghazal ke liye badhai

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  3. behatareen rachna ke saath aapka blog jagat men swagat hai all d best.

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  4. हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....

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  5. बहुत सुंदर कविता है आपकी शुभकामनाएं

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  6. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  7. बहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।

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  8. योगेश जी
    आपकी बात में दम है..........ग़ज़ल लाजवाब है...........स्वागत है आपका

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  9. सुन्दर रचना....आभार

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  10. फिर से कोई बुरी खबर आई
    हाथ मे रह गये निवाले हैं

    बहुत खूब.....!!

    भूख पर भी कोई लगाम कसे
    राशनों पर तो पड़े ताले हैं

    अच्छी पकड़ है आपकी ....स्वागत है आपका .....!!

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