शौकिया हमने साँप पाले हैं
ज़हर बुझे ये दाँत वाले हैं
फिर से कोई बुरी खबर आई
हाथ मे रह गये निवाले हैं
जवाब मे हमारी उलफत के
उन्होने असलहे निकले हैं
ज़ुर्म मेरा तो एक ही था मगर
तुमने बदले कई निकले हैं
ऊम्र भर घूस जिन्होने खाई
आज उनकी जबां मे छाले हैं
फिर नया ख्वाब बुना है उसने
आज फिर उसकी जाँ के लाले हैं
नूर रहता था कभी आँखों मे
आज क्यूँ वहाँ सिर्फ़ जाले हैं
भूख पर भी कोई लगाम कसे
राशनों पर तो पड़े ताले हैं
बावरे,खुद को समझता क्या है
तेरे खातों मे भी घोटाले हैं
yogesh ji
ReplyDeleteaaj pahli baar aapke blog par aayi hoon
bahut prabhavshali ghazal likhi hai aapne
bahut abha laga aapko padhna.
khush rahain
nira
shandar aur jaandar ghazal ke liye badhai
ReplyDeletebehatareen rachna ke saath aapka blog jagat men swagat hai all d best.
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है आपकी शुभकामनाएं
ReplyDeleteultimate
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।
ReplyDeleteयोगेश जी
ReplyDeleteआपकी बात में दम है..........ग़ज़ल लाजवाब है...........स्वागत है आपका
सुन्दर रचना....आभार
ReplyDeletewell done...
ReplyDeleteफिर से कोई बुरी खबर आई
ReplyDeleteहाथ मे रह गये निवाले हैं
बहुत खूब.....!!
भूख पर भी कोई लगाम कसे
राशनों पर तो पड़े ताले हैं
अच्छी पकड़ है आपकी ....स्वागत है आपका .....!!