Tuesday, April 28, 2009

दमा

मेरी इस बेचैनी का
हर बार यही परिणाम होता है
या तो किसी ना किसी रूप मे
सामने आ जाते हो तुम
या फिर ज़हन की खिड़की पर
एक लिफाफे मे लपेटकर
चुपचाप एक कविता रख जाते हो

निश्चित तौर पर
दूसरा तरीका(कविता वाला)
पहले के स्थान पर
एक अंशकालिक उपाय भर होता है
उसकी जगह ले सकने वाला
पूरा विकल्प नही
और फिर भी
पिछली कई दफा से
तुमने इस दूसरे तरीके को ही
अपनाया हुआ है

इतना ही नही
अब हर बार,धीरे-धीरे
बढ़ती ही जा रही है
तुम्हारे इस इलाज के
मुझ तक पहुँचने मे
होने वाली देरी भी
अब पिछली बार का ही वाक़या लेलो
उस बार बेचैनी मे
लगभग
साँस ही उखाड़ गयी थी मेरी
तब जाके पहुँची
तुम्हारी भेजी हुई कविता
(सज-धज के,रंगीन लिबास मे)

और साथ ही साथ
कम भी होती जा रही है
इस इलाज़ के बाद
मिलने वेल चैन की अवधि भी

सोचता हूँ की अब तुमसे
निकाह ही कर लूँ
तब जाके शायद
मुझे निज़ात मिल सके
मेरे इस इश्क़िया दमे के
मर्ज़ से..............

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