Monday, April 6, 2009

विवाद

हर विवाद को
एक आशा होती है
उसके सुलझ जाने की
पर वो,ये भूल जाता है
की उसका नाम ही है विवाद
उसका तो जन्म ही
सिर्फ़ इसलिए हुआ है
की उसे ज़िंदा रक्खा जा सके
क्योंकि उसके सुलझ जाने से
बरसों से चले आ रहे
राजनैतिक लाभ का
पल भर मे हो सकता है अंत

विवाद को
सिर्फ़ ज़िंदा रखा जाता है
उसकी भूख नही मिटाई जाती
और जब किसी विवाद के सहारे
हथिया ली जाती है सत्ता
तो उसे यूँ ही छोड़ दिया जाता है
भूखा,बेहोशी की हालत मे

और फिर जब
राजकीय भोग की अवधि
समाप्त होने लगती है
तो छिड़के जाते हैं
उसके चेहरे पर पानी के छींटे
(अगर उसमे जीवन का कोई अंश
अब भी बाकी हो तो)
और उसे पहनाया जाता है
नया लिबास
वो फिर हो लेता है उनके साथ
इस उम्मीद मे
कि शायद इस बार
उसकी अनदेखी ना हो
मगर उसकी ये उम्मीद
हर बार
बेकार साबित होती है

हर विवाद की
इंसान की ही तरह
होती है एक उम्र
जिसके बाद
वो खुद ही
छोड़ देता है साहस
और तोड़ देता है दम

ऐसे ही ना जाने
कितने भूखों-मरे
विवादों की लाशें
अब भी प्रतीक्षा मे हैं
अपने अंतिम संस्कार की..........

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