Monday, April 6, 2009

ज़रूरत

स्याही की बोतल मे
भरा हुआ है
तुम्हारा रूप

रोज़ भरता हूँ
अपनी कलम
और काग़ज़ पे
लिख देता हूँ
तुम्हारा नाम
खुश हो जाता है
काग़ज़
पर मेरी बेचैनी
कम नही होती

एक दिन
जाने क्या सोचकर
मैने भी पी ली
यही स्याही
मगर
होंठ नीले पड़ गये
और आँखों मे
छा गया अंधेरा

बेचैनी
फिर भी नही गयी
और जाती भी कैसे
इंसान और काग़ज़ की ज़रूरतें
अलग अलग होती हैं ना................

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