Thursday, April 9, 2009

मेरा दोस्त

कभी कभी मेरा दोस्त
कैसा चुप सा हो जाता है
और कभी
ऐसी ज़िद,ऐसी उछल-कूद
की दिल काँप जाता है

इसकी और हवा की जोड़ी
बहुत पुरानी है
जब ये होता है गुम्सुम
तो हवा भी
उदास-उदास रहती है
और जब ये चंचल होता है
तो हवा भी
झूमने लगती है
इनका ब्याह नही हुआ अब तक
फिर भी
दोनो खूब समझते हैं
एक दूसरे के
मन की बात

इनका एक और भी दोस्त है
चाँद
अक्सर ये तीनो
रात को
महफ़िल जमाते हैं
उस रोज़ मेरा दोस्त
खूब शोर करता है
और सुबह होने तक
लड़खड़ाता
और डगमगाता हुआ
चलता है

मेरा दोस्त
मेरी दी हुई सारी चीज़ें
बहुत समहाल के रखता है
अपने भीतर
घर से इतनी दूर
यहाँ पर
एक यही तो है मेरा
इसी के साथ बात करके
मैं दूर करता हूँ
अपना अकेलापन
इसी-से सीखी है मैने
चंचलता और गहराई
समंदर,मेरा दोस्त
मुझे बहुत अज़ीज़ है........

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी हमारे लिए बहुमूल्य है..........