Friday, April 24, 2009

ग़ज़ल

सूरज की आँखों मे कैसी लाली है
जगराते मे पिछली रात निकाली है

ऊंघ रहा है अब बादल के पल्लू मे
बादल ने भी उसपे चुन्नी डाली है

रात को चंदा,दिन मे सूरज पकता है
बदला करती आसमान की थाली है

चाँदनी को फिर रात ने है न्योता भेजा
पीले रंग की सारी आज निकाली है

बावरे ने दिन-रात तुम्हारे ख्वाबों मे
जागके अपनी खुशी की उम्र बढ़ा ली है

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