दो-धारी तलवार पे चलना मुश्किल होता है लेकिन
तेरे हिज़ृ की आग मे पलना,और भी मुश्किल होता है
सोच-समझकर सपने देखो,दुख हैं जुड़ते इनसे ही
ख्वाबों का तामीर मे ढलना,और भी मुश्किल होता है
मुश्किल है सच ग्रहों की गतियों का अंदाज़ लगा पाना
लेकिन तेरे मन को पढ़ना,और भी मुश्किल होता है
जंगल की उस आग पे काबू पाना तो मुश्किल ही है
लेकिन द्वेष की आग का बुझना,और भी मुश्किल होता है
जिन हाथों मे पहले से ही किसी और के रंग चढ़े हों
उन हाथों मे मेहंदी चढ़ना,और भी मुश्किल होता है
यूँ तो हर एक शाम है मुश्किल,लेकिन तेरा ज़िक्र हो जिसमे
ऐसी शामों का तो ढलना,और भी मुश्किल होता है
बिन पैरों के बैसाखी पे चलना मुश्किल है लेकिन
बिन तेरे इक कदम भी चलना,और भी मुश्किल होता है
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