Saturday, April 4, 2009

तुम्हारा असर

तेरी हथेली की ये छुवन थी
या जैसे ठंडी हवा का झोंका गुज़र रहा था
ज़मीं मे गहरी धँसी जड़ों मे
कहीं से पानी उतार रहा था

तुम्हारी बातों का ये असर था
या जैसे पूनम के चाँद ने फिर
कहा था दरिया के कान मे कुछ
जो बांवला हो उमड़ रहा था
तुम्हारे आने की आहटों पे
ज़मीं पे बिखरा तमाम मौसम
लिबास अपना बदल रहा था


तुम्हारी पलकों का ही था खुलना
या जैसे अन्धेरे इक शहर मे
उजाला फिर से बिखर रहा था
बहुत पुराना सा ख्वाब कोई
हक़ीकतों मे बदल रहा था

वो तेरे आँचल का था सरकना
या लाज के चेहरे का था घूँघट
जो धीरे-धीरे पिघल रहा था.

ये मेरे मन की बेचैनी ही थी
या स्याह जंगल मे था हिरण इक
तलाश मे बिछड़े यार की जो
हर एक पत्ता उलट रहा था...............

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