Monday, April 20, 2009

सांड़

ज़िंदगी के बगीचे मे
घुस आया है
कॅन्सर का सांड़

हैरत इस बात की
कि इतना बड़ा जीव
कब और कैसे आया भीतर
ये किसी को नही मालूम
बगीचे के मलिक को भी नही
वो तो एक रोज़ यूँ ही किसी ने
जब टॉर्च मारकर देखा
तो रात मे सिर्फ़ दो आँखें
टिमटिमाई थीं
आहिस्ता आहिस्ता
यकीन मे बदल गया ये शक़
कि अब उस जिस्म मे
एक बौखलाए सांड़ का बसेरा है

धीरे धीरे उसने
मिटाने शुरू कर दिए
ज़िंदगी के निशान
चेहरे की चमक
आँखों की रोशनी
और होठों की नमी
एक एक करके
बगीचे की हर चीज़
तहस नहस कर दी

ऐसा नही है
कि कोशिश नही की गयी
उसको भगाने या मार गिराने की
बहुत से प्रयत्न हुए
बहुत सी युक्तियाँ भी की गयीं
मगर उसने हमारे हर वार को
बेअसर कर दिया
इन वारों से बौखला कर
उसने और भी तेज़ कर दी
बर्बादी की रफ़्तार

आख़िरकार आज सुबह
जिस्म के सूखे पेड़ से
लटकता हुआ
साँस का आख़िरी गुच्छा भी
उसने नोच लिया
एक बार फिर
जीत गया वो
और हार गयी
हमारी सेवा

सुना है स्पेन मे
कुछ वाहियात लोग
सिर्फ़ अपने शौक के लिए
करते हैं
घायल सांड़ का शिकार
उस बज़ुबान और बेकसूर पर
दिखाते हैं अपनी बहादुरी

अगर वो इस सांड़ की
गर्दन मे चुबा दें नश्तर
तब मानू मैं
उनकी बहादुरी...................

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