मुश्किल बहुत था
गुस्से को
हलक के नीचे उतार देना
या फिर उसे घूँट पाना
गुस्सा
बार बार कर रहा था ज़िद
जीना चढ़कर
दिमाग़ मे सवार होने की,
और गालियों के लिबास मे
मुँह से बाहर
फुट पड़ने की
मगर फिर भी
उसे पी जाना पड़ा
उस गुस्से को
गुस्सा जो पैदा हुआ था
मालिक की भद्दी गालियों से
गालियाँ,जो पैदा हुईं थीं
उसके हाथ मे खाने की थाली लेकर
फिसल पड़ने से
और फिसलन पैदा हुई थी
उसके एक हमउम्र,बदमिज़ाज़
ग्राहक की थाली से
गिरी हुई जूठनसे
हम और आप
शायद अंदाज़ा भी नही लगा सकते
कि उसने कितनी ताक़त झोंक दी थी
अपने उस गुस्से पे
काबू पाने मे
आख़िर क्या वजह होगी
जो उस गुस्से पे काबू पाना
उसके लिए इतना ज़रूरी हो गया था
जबकि वो भी खूब जानता था
कि मालिक के गुस्से की वजह
सर्वथा नाजायज़ थी
वजह बहुत सीधी थी
कि वो गुस्से से
नही भर सकता था
उनके पेट
जो घर मे भूखे पेट
उसके लौटने की
आस लगाए बैठे थे
क्योंकि
गुस्से और अपमान से
बड़ी होती है भूख
क्योंकि गुस्सा हो सकता है झूठ
मगर भूख
हमेशा सच होती है...........
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