मेरे शहर की सड़कों पर
घर से दफ़्तर जाते वक़्त
या फिर लौटते हुए
लोगों को हर दूसरे दिन
दिखाई पड़ती है
किसी ट्रक के द्वारा रौंदे हुए
एक कुत्ते की लाश
वहीं दूसरी तरफ
लगभग कोई चार दिन के बाद ही
दिखती है
भीड़ से घिरी
किसी आदमी की लाश
सरकार की तरफ से
निजी चैनेलों के द्वारा कराए गये
इस सर्वेक्षण के नतीजे साफ हैं
कि अभी भी हमारे शहर मे
इंसानी ज़िंदगी
पुर दो गुना से भी
ज़्यादा बेहतर है
एक कुत्ते की ज़िंदगी से............
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