मेरे व्यसन के काले साँपों ने
मुझे क़ैद कर रक्खा है
अपनी जकड़ मे
ना जाने कितने ही
असंख्य साँपों ने
कस रक्खे हैं फंदे
मेरी कलाईयों पर
मेरे पैरों पर
और मेरे गले के चारों ओर
जब कभी
तीव्रतर होने लगती है
कोई इच्छा
तो और भी ज़्यादा कस जाते हैं
ये फंदे
कभी-कभी तो इतने ज़्यादा
की खून का प्रवाह रुक जाता है
और सफेद पड़ता मेरा जिस्म
पसीने से
तर-बतर हो जाता है
तब जाके कहीं
थोड़ी सी ढीली पड़ती है
पैर की फाँस
मैं लगभग
बहकते कदमों से पहुँचता हूँ
अपनी इच्छा-पूर्ति के स्थान पर
और तब
जैसे-जैसे पूरी होती है इच्छा
वैसे -वैसे ढीले पड़ जाते हैं
सारे फंदे
और कुछ ही देर मे
मैं पूरी तरह से
मुक्त हो जाता हूँ
इनकी पकड़ से
मगर इसके ठीक बाद ही
मैं जैसे ही मुड़ता हूँ
मुँह खोले एक बहुत बड़ा डरावना साँप
जहर भरे अपने दो दाँत
गड़ा देता है मेरे जिस्म पर
पता नही कब तक
मैं उस आत्म-ग्लानि का दंश
झेलता रहता हूँ
लेकिन तब उन काले साँपों मे से
कोई नही आता
मेरी मदद के लिए...................
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