Thursday, April 9, 2009

धुआँ

धुएँ मे जल रही हैं साँसें
और साँसों मे
पल रहा है धुआँ
एक साँस से दूसरी साँस तक
मैं पहुँचता हूँ
इसी धुएँ के
पुल से होकर

धुआँ नही
तो साँस नही
और साँस नही
तो मेरा वज़ूद भी धुआँ
अब तो
साँसें बोता भी यही है
और उखाड़ता भी है
यही धुआँ

पहले जब तुम थी
तो कैसे डर-डर के
चोरी छिपे आता था ये
लेकिन तुम्हारे जाने के बाद से
दिन रात
यहीं पड़ा रहता है

एक बार फिर
तुम आकर
इसको डाँट दो
सिर्फ़ तुम्हारे पास ही है
इसका औज़ार
मेरी बाजुओं से
इसकी गिरफ़्त के
फंदे काट दो........

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