Monday, April 6, 2009

बावरे को कुछ याद नही

उड़ते उड़ते टुकड़े हैं कुछ,हिस्सा कोई खास नही
मुझको अब भी गम होता है,क्यूँ तू मेरे पास नही

पहले तो किस्से तेरे दिन रात सुनाया करता था
एक सदमे मे खो बैठा है,अब इसकी आवाज़ नही

यूँ तो ज़ख़्मों के ऊपर,फिर चढ़ आया है माँस नया
अब भी सीने मे अटकी है,तेरे ग़म की फाँस कहीं

जाते-जाते इतना तो,दे दे मेरी तन्हाई को
तेरा चेहरा देख के गुजरूँ,दूजी कोई आस नही

हर लम्हा तेरी यादों मे धुआँ धुआँ सा रहता हूँ
प्रेम टपकता हो जिनसे,ऐसे भीगे लम्हात नही

जब से तेरा संग छूटा है,मुझको ये दिखती ही नही
तेरे संग ही रख भूला हूँ,मैं अपनी परवाज़ कहीं

कौन से जुर्म की माफी माँगी है तुमने ये तो कह दो
ये तो सब कुछ भूल चुका है,बावरे को कुछ याद नही

1 comment:

आपकी टिप्पणी हमारे लिए बहुमूल्य है..........