Friday, October 29, 2010

नमकीन

यूँ तुम्हारा दौड़ कर आके गले लगना
टूट कर फिर बिखर जाना बज्म मे मेरी
फिर छलक आते हैं जो इन आँख मे आँसू
ये नही आँसू,हैं तेरी प्रीत के छींटे
गर कभी छींटा कोई गिरता है होंठों पर
तब मैं चखता हूँ ज़रा सा स्वाद लहरों का
हाँ ज़रा नमकीन है पर ज़िंदगी सा है

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