Saturday, October 30, 2010

dhandhli

उस रात
बड़ी देर तक चली बैठक
चाँद और बाकी ग्रहों के बीच
सबकी आपत्तियों का
निवारण हो जाने के बाद
बैठक ने इस प्रस्ताव को
सर्व सहमति से पारित किया
की अमुक प्रेमी-प्रेमिका के
प्रणय जीवन मे
आख़िरकार मिलन का संयोग
आ गया है
और आज के दिन ही
उनके मिलने की
संपूर्ण व्यवस्था कराई जाए

तो चाँद ने
इस आशय की चिट्ठी लिखकर
सुबह होने से पहले
सूरज के दफ़्तर पहुँचा दी
और सारे लोग
बैठक के बाद
अपने अपने घर
विश्राम करने चले गये
(क्योंकि किसी भी
प्रेमी-प्रेमिका के
प्रणय जीवन मे
आने वाले कई दिनो तक
मिलन का संयोग नही था
इसलिए अगली बैठक की संभावित तारीख
कोई एक महीने बाद की निर्धारित हुई)
बड़े सुकून मे थे सब

सुबह हुई
तो सूरज ने दफ़्तर मे आने के साथ ही
दिन के प्रस्तावित कार्यों पर
एक सरसरी नज़र डाली
बहुत से और कामो के साथ
ये भी एक काम था
(प्रेमी-प्रेमिका को मिलवाने का
यही बस एक काम था
बाकी सब तो
धोखा दिलवाने,फूट पड़वाने
और जुदा करवाने के ही थे)
फिर भी खुश था सूरज
की कम से कम आज तो
कोई अच्छा काम करेगा वो
वरना ऐसे काम तो अब
छठे-छामासे ही मिलते हैं
कभी कभार

सूरज के लिए
ये कोई मुश्किल काम नही था
अपने इतने लंबे सेवा-काल मे
उसने ना जाने कितनी बार
अंजाम दिया था
ऐसे कामो को

तो उसने तैयार की रूपरेखा
इस कार्य के क्रियान्वयन की
और प्रेमी-प्रेमिका की
संभावित स्थितियों का पता देकर
उनकी ठीक ठीक स्थिति का
पता लगाने को कहा
धूप के दूतों को

धूप के दूतों ने
हर जगह तलाशा
जहाँ उनकी दखलंदाज़ी थी
वहाँ खुद ही
और जहाँ वर्जित था
उनका प्रवेश
वहाँ मदद की उनकी
अंधेरे के मुखबिरों ने
दिन-भर चलता रहा
यही सिलसिला
मगर तलाश ख़त्म होने का
नाम ही नही ले रही थी

धीरे धीरे करीब आ रहा था
सूरज के जाने का वक़्त
साफ साफ झलकने लगा था
उसके माथे पे पसीना
पहली बार
नाकाम होने जा रहा था सूरज
सूरज भी चाह रहा था ठहरना
मगर वक़्त को रोकना तो
उसके बस मे भी नही था

फिर शाम घिरने से
बस कुछ देर पहले
सूरज को दिखाई दिए वो
बहुत बड़ी हैरत ये
की अनुमान के विपरीत
दोनो एक साथ थे
समुद्र के किनारे
एक दूसरे का हाथ थामकर
चैन से लेटे hue

लाज़िम था
सूरज का आग-बबुला हो जाना
गुस्से से तमतमाया सूरज
जब उन्हे करीब से देखने के लिए
उनके ऊपर झुका
तो उसकी आँखें
फटी की फटी रह गयीं
कुछ ऐसा हो गया था
जो कभी नही हुआ था
उससे पहले
खबर के फैलते ही
पूरे तारा-मंडल मे
हड़कंप मच गया
पिछली रात समुद्र मे कूद कर
उन दोनो ने
जान दे दी थी अपनी
भाग्य के तय होने से भी पहले
खुद निर्धारित कर ली थी
अपनी नियती

बस फिर क्या
फिर वही हुआ
जो होता है आम-तौर पर
ऐसी घटनाओ के बाद
चाँद ने ग्रहों की
एक आपात बैठक बुलाई
सबने एक दूसरे पर गढ़े आरोप
की उन्होने
ठीक ठीक नही बताई
अपनी दशा
चंद्रमा ने शनि पर
शनि ने गुरु पर
तो गुरु ने किसी और पर
बड़ी देर तक चलता रहा
यही सिलसिला
अंततहा पूरे तारा-मंडल की
गरिमा का ध्यान रखते हुए
यही उचित समझा गया
की इस पूरे मामले को
किसी ना किसी तरह से
दबा दिया जाए

बस उसके बाद
दस्तावेज़ों मे की गयी फेरबदल
आग के हवाले कर दी गयी
सूरज को लिखी हुई चिट्ठी
और यम को
अपने साथ मिलाकर
उसके दफ़्तर मे रखवाया गया
एक दिन पहले की तारीख वाला
आदेश-पत्र

बस थोड़ी सी जद्दोजेहद से ही
पूरी तरह दब गया
इतना बड़ा मामला
मगर उस घटना के
चश्मदीद गवाह जानते हैं
की कितना कड़ा पहरा था उन पर
मगर मिलन की चाह
इतनी बलवती हो गयी थी
उनके भीतर
की उसने सारे पहरों को
धकेल दिया पीछे

इस घटना के बाद से
पूरी तरह तो नही
फिर भी कुछ हद तक
कमी आ गयी है
भाग्य के द्वारा
प्रेमी -प्रेमिकाओं के
प्रणय जीवन के साथ
की जाने वाली
ज़्यादतियों मे.............................

2 comments:

  1. कमाल की कविता है.........कहाँ से सोचते हो ये सब?

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