Saturday, October 30, 2010

खिड़की के बगल की वो सीट

खिड़की की तरफ करके
बैठी है मुँह
सूरज
आधा दिन
पार कर चुका है
थकी धूप
जब पड़ती है
उसके चेहरे पे
तो फिर से
तरोताज़ा हो जाती है

टुकड़ों मे
देख पता हूँ उसे
भीड़ से
नज़रें बचाते हुए
कभी कान
कभी ढीली सी चोटी
और कभी
उसकी दाँयी आँख के
बगल का छोटा सा निशान
चीटियों की तरह
ढोकर लाता हूँ
छोटे छोटे से दृश्य
और जमा करता जाता हूँ
मन के एक कोने मे

मेहन्दी रची दिखती है
उसकी कलाई मे
सोचता हूँ कुछ देर
कि उसी की शादी की होगी
या उसकी सहेली की
और फिर
बिना सबूत ही
नतीजे पर भी
पहुँच जाता हूँ
कि सहेली की
शादी की ही होगी

मन को विश्वास है
कि बड़ी सुंदर है वो
कम से कम
शुरुआती रुझान तो
इसी ओर
इशारा करते हैं

रोक नही पाता हूँ
खुद को
बार बार
उसी तरफ देख बैठता हूँ
भीड़ चढ़ गयी है डब्बे मे
अब मुश्किल से
कूद फाँद के पहुँचती हैं
उस तक नज़रें

अज़ीब से लोग हैं
बुर्क़े वाले,घूँघट वाले
पान चबाते,मैले-कुचैले
फिर भी अज़ीब सी बात है
कि पिछले अनुभवों के विपरीत
इस बार ये सब कुछ
अच्छा लग रहा है
हँसी बिखर गयी है
मेरे चेहरे पर
एक मुहावरे की
टाँग तोड़ने जा रहा हूँ
की ''एक मछली सारे तालाब को
अच्छा कर देती है''

इस बार
हंसते हुए देखता हूँ
उसकी तरफ
इत्तेफ़ाक़न
वो भी हंस रही है
बस फिर क्या
भीतर का दब्बू आशिक़
छलांगें मारने लगा है

मगर चेहरा
अभी भी अधूरा है
मन मे
कॅमरे का सिर्फ़ एक ऐंगल
वो भी
दाँयी तरफ का साइड व्यू

जी मे आता है
कि बस कुछ पल के लिए
बाकी सारे लोग
बंद कर लें अपनी आँखें
और मैं
ठीक उसके सामने जाकर
उसका पूरा चेहरा देख लूँ
उसके चेहरे का हर निशान
और हर तिल
उसकी त्रि-आयामी
मूर्ति गढ़ लूँ
अपने मन मे

अरे ये क्या
ज़रा सा ख़यालों मे
क्या गुम हुआ
वो ही गुम हो गयी
पता नही कब उतर गयी

ऐसा लगता है
कि मेरे देखने के लिए ही
बैठी थी अब तक
ज़रा सी अनदेखी क्या हुई
वो तो बुरा मान गयी
(वैसे ये वक्तव्य भी
मेरे भीतर के
उस दब्बू आशिक़ का ही है
जिससे बाहर जाकर तो
कुछ कहते बनता नही है
बस मेरे कान मे आकर
करता है
खुसुर फुसुर)

बहरहाल
खिड़की के बगल की
वो सीट
अब खाली है
और मुझे लगता है
कि खिड़की के बगल की वो सीट
अब कभी नही
भर पाएगी.........................

5 comments:

  1. awww... Ye to wahi hai na... Ab tak kitni fresh hai.. Kya baat hai bhaai..

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  2. bahut achche tarah se hamarey jaisey logo kee feelings ko express kiyaa hai. agar wo ladkee pad le toh paagal ho jaaye ki usko dekhkar itnee achchee kavita likhee gayee.

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  3. mujhe samajh nahi aata jo mujhe kehna hota hai, ye kambakht deep kaise keh deti hai !! mujhe ahha kehna tha, isne pehle keh diya, mujhe outstanding kehna tha, isne keh diya, mujhe awwww kehna tha.....ufff !

    chalo bhai...main bina awww kahe hi bata doon, bohot pyaari nazm hai....chooooo chweeeeeeet :)

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  4. mast hai kuch apne college par bhi likho dayani .

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  5. चीटियों की तरह
    ढोकर लाता हूँ
    छोटे छोटे से दृश्य
    और जमा करता जाता हूँ
    मन के एक कोने मे

    ---------------

    एक मुहावरे की
    टाँग तोड़ने जा रहा हूँ
    की ''एक मछली सारे तालाब को
    अच्छा कर देती है''

    -----------------------

    bahut khoobsurat khayal.........nice poem!

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