रात की हंडिया नींद मे रखकर रोज़ पकाता हूँ
अगले दिन ये सारा गम मैं खुद ही ख़ाता हूँ
भूखा आख़िर कैसे बाँटे अपनी खुराकों को
माँगने आते हैं मुझसे जो,उनको भगाता हूँ
प्यार भरी ये झूठी बातें रहने ही दो तुम
तुमको मैं गुस्से मे ही अब सच्चा पाता हूँ
बहका दरिया राह छोड़कर मुझसे चला मिलने
रोज़ मैं उसको उसके समंदर तक पहुँचाता हूँ
मेरे अकेलेपन को तुम खाली ना समझ लेना
इसमे बहुत से नगमे हैं जिनको मैं गाता हूँ
कभी कभी बर्बाद भी होना अच्छा लगता है
तुमसे मिली बर्बादी को इस दिल मे सजाता हूँ
हैरां हूँ बस थोड़ा सा तुम बदले आख़िर क्यूँ
यारों मे लेकिन तुमको अच्छा ही बताता हूँ
बावरा है ये मन मेरा समझे ना हक़ीक़त को
ख्वाब से ये उठता ही नही जितना भी जगाता हूँ
awesome dost maza aa gaya padh ke kasam se
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