जाने कैसा रोग लगा दीवाने को
हंसते हंसते कहता है मर जाने दो
उसने भी एक ख्वाब का कुत्ता पाला था
दौड़ता है अब ख्वाब उसी को खाने को
प्यार कभी इक तरफ़ा तो होता ही नही
मन ज़िद करता है पर उसको पाने को
होश भी खोया,नींद भी खोई और तो और
गलियों गलियों फिरता है अब खाने को
बावरे की क्या बात करें वो पागल है
रहने भी दो,छोड़ो, उसको जाने दो
पंक्तियाँ है आपकी तीर सी
ReplyDeleteदवा हैं ये हर पीर की
साहिल पे ही दिखलाती हैं ये
हर बूँद समुन्दर के नीर की