Wednesday, July 29, 2009

ग़ज़ल

किसी का साथ कभी दिल को गवारा ना हुआ
खुदा बस दूसरों का रहा,हमारा ना हुआ

हाँ एक बार तेरी नज़र से भीगा था मैं
जो एक बार हुआ क्यों वो दुबारा ना हुआ

क्यों उसकी कोख मे सन्नाटा साँस लेता है
किसलिए उसको बुढ़ापे का सहारा ना हुआ

आस्तीने चढ़ाकर त्योरियाँ दिखाईं भी
मन मगर कभी भी बस मे हमारा ना हुआ

अनाज बाँटकर तो गये थे सरकारी लोग
था इतना बड़ा परिवार ,गुज़ारा ना हुआ

तुम्हारी दीद के शीरे से ये महरूम रहा
इश्क़ मेरा कभी किशमिश से छुआरा ना हुआ

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