Wednesday, July 29, 2009

ग़ज़ल

जाने कैसा रोग लगा दीवाने को
हंसते हंसते कहता है मर जाने दो

उसने भी एक ख्वाब का कुत्ता पाला था
दौड़ता है अब ख्वाब उसी को खाने को

प्यार कभी इक तरफ़ा तो होता ही नही
मन ज़िद करता है पर उसको पाने को

होश भी खोया,नींद भी खोई और तो और
गलियों गलियों फिरता है अब खाने को

बावरे की क्या बात करें वो पागल है
रहने भी दो,छोड़ो, उसको जाने दो

1 comment:

  1. पंक्तियाँ है आपकी तीर सी
    दवा हैं ये हर पीर की
    साहिल पे ही दिखलाती हैं ये
    हर बूँद समुन्दर के नीर की

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